Tuesday 27 May 2008

क्या गुनाह था उनका...?

कई महीने बीट गए. एक समाचार पत्र में पढ़ा था. एक धुंधली सी याद बाकी है. पता याद धुंधली है या उस खबर को याद करके आँखें धुंधली हो जातीं हैं. आज मैं उसी घटना का ज़िक्र यहाँ करने जा रहा हूँ. मैं इंटरनेट पर अक्सर कुछ ना कुछ सर्च करता रहता हूँ. उस दिन भी कर रहा था. एक समाचार पत्र की वेबसाइट थी वह. खबर हेडिंग तो साफ साफ याद नहीं है, लेकिन खबर को आज तक नहीं भूल सका हूँ.
खबर राजस्थान की एक जेल की थी. जहाँ दो मासूम बच्चे अपने उन मा-बाप की ग़लती की सज़ा काट रहे हैं, जो अपने वतन को प्यार करते थे. प्यार कैसा भी हो अंजाम अक्सर दुखद ही होता है. उन मासूमों के माँ-बाप भी इसी प्यार की भेंट चड़े. उन बच्चों में एक लड़का है और एक उसकी छोटी बहन. ये दोनों बच्चे अपने माँ-बाप के साथ बांग्लादेश में आराम से रहते थे. जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ थीं. उनके माँ-बाप बांग्लादेश में रहते थे, लेकिन वे थे पाकिस्तानी, जो विस्थापित होकर यहाँ आए थे. उनके दिल की एक तमन्ना थी वे ज़िंदगी के बाकी दिन अपने वतन में गुज़ारें.
आख़िर वह दिन भी आ गया. उन्होंने अपनी ज़िंदगी भर की कमाई खर्च करके एक एजेंट से कहा की वह उनको बच्चों सहित पाकिस्तान पहुँचा दे. एजेंट ने इस काम के लिए उस बांग्लादेशी से 5 हज़ार रुपए लिए. उस दिन वह बहुत खुश था कि आज से ठीक 10 दिन बाद वह अपने वतन में होगा. एजेंट ने उसे मुंबई लाकर छोड़ दिया और एक दूसरे एजेंट से मिलवाकर कहा कि ये आदमी तुम्हें राजस्थान से बॉर्डर पार कराएगा. ये परिवार कुछ दिन तक मुंबई में रहा. उसके बाद एक दिन उस आदमी के साथ राजस्थान चल दिया. उस आदमी ने उस परिवार से 5 हज़ार रुपए और लिए.
कुछ ही देर में वे बॉर्डर के पार थे. अपने दोनों बच्चों को सीने से लगाए, जब उन्होंने अपने वतन की ज़मीन पर कदम रखे तो उनके आँसू निकल आए. जाने कितनी बार चूमा होगा उन्होंने अपने देश की माटी को. पर ये खुशी ज़्यादा देर नहीं रह सकी. उनको सीमा पार करते ही पाकिस्तानी फोर्स ने पकड़ लिया. उन्होंने बताया कि वे पाकिस्तानी हैं और बंगलादेश से आए हैं पर उनकी बात किसी ने नहीं सुनी. पति को जेल में डाल दिया गया. पत्नी को भी दूसरी जगह बंद कर दिया गया. बच्चों को कहीं और. उन पर आरोप लगाया गया कि वे हिन्दुस्तानी जासूस हैं. खैर, इसके बाद जो हुआ वह दिल दहला देने वाली घटना है. उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई. पत्नी के साथ फोर्स वालों ने बलात्कार किया. पति को मारा गया. ये सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. एक दिन फोर्स का कोई बड़ा अधिकारी वहाँ आया और डर के मारे दोनों को छोड़ दिया गया. फोर्स के उन्हीं लोगों ने उनको सीमा पार भारत में भेज दिया जिन्होंने औरत के साथ बलात्कार किया था.
वे एक बार फिर से भारत में थे. रात का वक़्त था. चारों तरफ अंधेरा. बीच बीच में सिर्फ़ भारतीय फोर्स की सर्च लाइट दिखाई दे जाती. वे लोग उस अंधेरे में अपने बच्चों को लिए भाग रहे थे. डर था कि कहीं भारतीय फोर्स ना पकड़ ले. लेकिन वही हुआ जिसका डर था. फोर्स ने उन्हें देख लिया. फोर्स ने उन्हें चेतावनी दी कि वे रुक जाएँ वरना गोली चला देंगे. पर उन्हें याद आई पाकिस्तान में हुआ ज़ुल्म. इसलिए वे रुके नहीं भागते रहे. आख़िर में फोर्स ने गोली चला दी और दो लाशें बिछ गईं. उन लाशों के पास रह गए, दो बिलखते हुए मासूम. फोर्स उन दोनों को उठाकर ले आई. आज उन्हें पुलिस में कोई तकलीफ़ नहीं है, लेकिन उन्हें यह पता नहीं है कि आख़िर उनके मा-बाप और उनकी ग़लती क्या थी ?

7 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

रवि भाई,मर्मस्पर्शी तथ्य हैं....

vipinkizindagi said...

आज रात मैं सो नही पा उँगा उन बच्चो के बारे में ही सोचता रहूँगा
प्लीज़ Word Verification हटाए

रवि रावत said...

bahut bahut shukriya Rupesh ji or Vipin ji... kabhi kabhi hum zindagi kuch sachchaiyon se vakif ho jate hain, jinhen bhulaya nahin ja sakta... bas aisi hi hi dil ko chhu jane wali baton ko main likh dalta hun, mann halka ho jata hai...
aage bhi likhta rahunga...

Anonymous said...

मायूसी छोड़ो

मेरे प्यारे देशभक्तों,
आज तक की अपनी जीवन यात्रा में मुझे अनुभव से ये सार मिला कि देश का हर आदमी डर यानि दहशत के साये में साँस ले रहा है! देश व समाज को तबाही से बचाने के लिए मायूस होकर सभी एक दूसरे को झूठी तसल्ली दिए जा रहे हैं. खौफनाक बन चुकी आज की राजनीति को कोई भी चुनौती देने की हिम्मत नही जुटा पा रहा. सभी कुदरत के किसी करिश्मे के इंतजार में बैठे हैं. रिस्क कोई लेना नहीं चाहता. इसी कारण मैं अपने देश के सभी जागरूक, सच्चे, ईमानदार नौजवानों को हौसला देने के लिए पूरे यकीन के साथ यह दावा कर रहा हूँ कि वर्तमान समय में देश में हर क्षेत्र की बिगड़ी हुई हर तस्वीर को एक ही झटके में बदलने का कारगर फोर्मूला अथवा माकूल रास्ता इस वक्त सिर्फ़ मेरे पास ही है. मैंने अपनी 46 साल की उमर में आज तक कभी वादा नहीं किया है मैं सिर्फ़ दावा करता हूँ, जो विश्वास से पैदा होता है. इस विश्वास को हासिल करने के लिए मुझे 30 साल की बेहद दुःख भरी कठिन और बेहद खतरनाक यात्राओं से गुजरना पड़ा है. इस यात्रा में मुझे हर पल किसी अंजान देवीय शक्ति, जिसे लोग रूहानी ताकत भी कहते हैं, की भरपूर मदद मिलती रही है. इसी कारण मैंने इस अनुभव को भी प्राप्त कर लिया कि मैं सब कुछ बदल देने का दावा कर सकूँ. चूँकि ऐसे दावे करना किसी भी इन्सान के लिए असम्भव होता है, लेकिन ये भी कुदरत का सच्चा और पक्का सिधांत है की सच्चाई और मानवता के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर जो भी भगवान का सच्चा सहारा पकड़ लेता है वो कुछ भी और कैसा भी, असंभव भी सम्भव कर सकता है. ऐसी घटनाओं को ही लोग चमत्कार का नाम दे देते हैं. इस मुकाम तक पहुँचने के लिए, पहली और आखिरी एक ही शर्त होती है वो है 100% सच्चाई, 100% इंसानियत, 100% देशप्रेम व 100% बहादुरी यानि मौत का डर ख़त्म होना. यह सब भी बहुत आसान है . सिर्फ़ अपनी सोच से स्वार्थ को हटाकर परोपकार को बिठाना. बस इतने भर से ही कोई भी इन्सान जो चाहे कर सकता है. रोज नए चमत्कार भी गढ़ सकता है क्योंकि इंसान फ़िर केवल माध्यम ही रह जाता है, और करने वाला तो सिर्फ़ परमात्मा ही होता है. भगवान की कृपा से अब तक के प्राप्त अनुभव के बलबूते पर एक ऐसा अद्भुत प्रयोग जल्दी ही करने जा रहा हूँ, जो इतिहास के किसी पन्ने पर आज तक दर्ज नहीं हो पाया है. ऐसे ऐतिहासिक दावे पहले भी सिर्फ़ बेहतरीन लोगों द्वारा ही किए जाते रहे हैं. मैं भी बेहतरीन हूँ इसीलिए इतना बड़ा दावा करने की हिम्मत रखता हूँ.
प्रभु कृपा से मैंने समाज के किसी भी क्षेत्र की हर बर्बाद व जर्जर तस्वीर को भलीभांति व्यवहारिक अनुभव द्वारा जान लिया है. व साथ- साथ उसमें नया रंग-रूप भरने का तरीका भी खोज लिया है. मैंने राजनीति के उस अध्याय को भी खोज लिया है जिस तक ख़ुद को राजनीति का भीष्म पितामह समझने वाले परिपक्व बहुत बड़े तजुर्बेकार नेताओं में पहुँचने की औकात तक नहीं है.
मैं दावा करता हूँ की सिर्फ़ एक बहस से सब कुछ बदल दूंगा. मेरा प्रश्न भी सब कुछ बदलने की क्षमता रखता है. और रही बात अन्य तरीकों की तो मेरा विचार जनता में वो तूफान पैदा कर सकता है जिसे रोकने का अब तक किसी विज्ञान ने भी कोई फार्मूला नही तलाश पाया है.
सन 1945 से आज तक किसी ने भी मेरे जैसे विचार को समाज में पेश करने की कोशिश तक नहीं की. इसकी वजह केवल एक ही खोज पाया हूँ
कि मौजूदा सत्ता तंत्र बहुत खौफनाक, अत्याचारी , अन्यायी और सभी प्रकार की ताकतों से लैस है. इतनी बड़ी ताकत को खदेड़ने के लिए मेरा विशेष खोजी फार्मूला ही कारगर होगा. क्योंकि परमात्मा की ऐसी ही मर्जी है. प्रभु कृपा से मेरे पास हर सवाल का माकूल जबाब तो है ही बल्कि उसे लागू कराने की क्षमता भी है.
{ सच्चे साधू, संत, पीर, फ़कीर, गुरु, जो कि देवता और फ़रिश्ते जैसे होते हैं को छोड़ कर}
देश व समाज, इंसानियत, धर्मं व इन्साफ से जुड़े किसी भी मुद्दे पर, किसी से भी, कहीं भी हल निकलने की हद तक निर्विवाद सभी उसूल और सिधांत व नीतियों के साथ कारगर बहस के लिए पूरी तरह तैयार हूँ. खास तौर पर उन लोगों के साथ जो पूरे समाज में बहरूपिये बनकर धर्म के बड़े-बड़े शोरूम चला रहे हैं.
अंत में अफ़सोस और दुःख के साथ ऐसे अति प्रतिष्ठित ख्याति प्राप्त विशेष हैसियत रखने वाले समाज के विभिन्न क्षेत्र के महान लोगों से व्यक्तिगत भेंट के बाद यह सिद्ध हुआ कि जो चेहरे अखबार, मैगजीन, टीवी, बड़ी-बड़ी सेमिनार और बड़े-बड़े जन समुदाय को मंचों से भाषण व नसीहत देते हुए नजर आ रहे हैं व धर्म की दुकानों से समाज सुधार व देश सेवा के लिए बड़ी-बड़ी कुर्बानियों की बात करने वाले धर्म के ठेकेदार, जो शेरों की तरह दहाड़ते हैं, लगभग 99% लोगों ने बात पूरी होने से पहले ही ख़ुद को चूहों की कौम में परिवर्तित कर लिया. समस्या के समाधान तक पहुँचने से पहले ही इन लोगों ने मज़बूरी में, स्वार्थ में या कायरपन से अथवा मूर्खतावश डर के कारण स्पष्ट समाधान सुझाने के बाद भी राजनैतिक दहशत के कारण पूरी तरह समर्पण कर दिया. यानि हाथी के खाने और दिखने वाले दांत की तरह.
मैं हिंदुस्तान की 125 करोड़ भीड़ में एक साधारण हैसियत का आम आदमी हूँ, जिसकी किसी भी क्षेत्र में कहीं भी आज तक कोई पहचान नहीं है, और आज तक मेरी यही कोशिश रही है की कोई मुझे न पहचाने. जैसा कि अक्सर होता है.
मैं आज भी शायद आपसे रूबरू नहीं होता, लेकिन कुदरत की मर्जी से ऐसा भी हुआ है. चूँकि मैं नीति व सिधांत के तहत अपने विचारों के पिटारे के साथ एक ही दिन में एक ही बार में 125 करोड़ लोगों से ख़ुद को बहुत जल्द परिचित कराऊँगा.
उसी दिन से इस देश का सब कुछ बदल जाएगा यानि सब कुछ ठीक हो जाएगा. चूँकि बात ज्यादा आगे बढ़ रही है इसलिए मैं अपना केवल इतना ही परिचय दे सकता हूँ
कि मेरा अन्तिम लक्ष्य देश के लिए ही जीना और मरना है.
फ़िर भी कोई भी , लेकिन सच्चा व्यक्ति मुझसे व्यक्तिगत मिलना चाहे तो मुझे खुशी ही होगी.. आपना फ़ोन नम्बर और अपना विचार व उद्देश्य mail पर जरुर बताये, मिलने से पहले ये जरुर सोच लें कि मेरे आदर्श , मार्गदर्शक अमर सपूत भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, लाला लाजपत राए सरीखे सच्चे देश भक्त हैं. गाँधी दर्शन में मेरा 0% भी यकीन नहीं हैं.
एक बार फ़िर सभी को यकीन दिला रहा हूँ की हर ताले की मास्टर चाबी मेरे पास है, बस थोड़ा सा इंतजार और करें व भगवान पर विश्वास रखें. बहुत जल्द सब कुछ ठीक कर दूंगा. अगर हो सके तो आप मेरी केवल इतनी मदद करें कि परमात्मा से दुआ करें कि शैतानों की नजर से मेरे बच्चे महफूज रहें.
मुझे अपने अनुभवों पर फक्र है, मैं सब कुछ बदल दूंगा.

क्योंकि मैं बेहतरीन हूँ.
आपका सच्चा हमदर्द
(बेनाम हिन्दुस्तानी)
e-mail- ajadhind.11@gmail.com

मनोज द्विवेदी said...

bahut marmik rachana hai. dono bachchon ke bare me soch raha hun.

सुनील शिवहरे said...

करता कोई है भुगतना किसी को पड़ता है... यही तो दुनिया की रीत है...
रचना काफ़ी मर्म स्पर्शी है|

seema prakash said...

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