Thursday 22 May 2008

किस्मत वालों का है मुंबई शहर

अपने बारे में लिखना सबसे मुश्किल काम होता है. मैने कभी लिखा भी नहीं है. पर आज मेरे पत्रकारिता के गुरु ने मुझसे कहा की तुम अपने अनुभव अपने ब्लॉग पर लिखो, जो तुमने मुंबई मैं हासिल किए. शायद आज मैं लिखने बैठ गया हूँ.
मेरे अनुभव उन लोगों से अलग नहीं हैं, जो मुंबई में कुछ ख्वाब लेकर आते हैं. लेकिन इस मामले मैं खुद को थोड़ा खुशकिस्मत पता हूँ कि मुंबई आने से पहले यहाँ मेरे लिए सिर पर छत मौज़ूद थी. मैने 23 दिसंवर 96 को पहली बार इस पावन कर्मभूमि पर कदम रखे थे. उस दिन शनिवार था. शहर से बिल्कुल अंजान, जेब में कुछ रुपए और दो बेग. एक में थीं मेरी किताबें और दूसरे में कुछ कपड़े. शाम होते होते मैं अपने दोस्त के पते पर पहुँच गया था. थकान इतनी थी कि खाने-पीने कि सुध नहीं थी. मैं और मेरा दोस्त 4 साल तक साथ पढ़े हैं. इसके बाद वह भागकर मुंबई आ गया था और मैं पढ़ाई करता रहा.
खैर जब मुंबई दोस्त से मिला तो बड़ी खुशी हुई. उसे भी हुई या नहीं मैं नहीं जानता. लेकिन वह मुझे अपने फ्लॅट पर नहीं ले गया. उसने मुझे अपने उस ऑफीस में भेज दिया जहाँ पहली बार मेरा परिचय ख़टमालों से हुआ. खैर, थका था इसलिए नींद आ गई. जहाँ मैं रहा, वहाँ नीचे ऑफीस था और ऊपर रहने कि जगह. मेरे अलावा वहाँ मेरे दोस्त के दो नौकर भी रहते थे.
अगले दिन से मेरे और ज़िंदगी के बीच संघर्ष शुरू हो गया. सबसे पहले मैं गया श्री अशोक मिश्रा के पास, जो फिल्म लेखक हैं. उन्होने मुझे नवभारत टाइम्स में काम करने वाले अपने एक दोस्त का नंबर मुझे दिया. मैने उनसे नवभारत टाइम्स में काम दिलाने के लिए संपर्क किया, लेकिन उन दिनों वे दिल्ली में थे और 15 दिन बाद लौटने वाले थे, सो तब तक मैं दूसरी जगह काम कि तलाश में लग गया. कई जगह भटका, लेकिन काम इतनी आसानी से नहीं मिलता यहाँ, जितना हम सोचते हैं. कई अख़बारों के दफ़्तरों से भगाया गया, तो कई लोगों ने आश्वासन दिया. इस बीच मैने टाटा स्काइ मैं मार्केटिंग शुरू कर दी. लेकिन हाथ तो बेचैन थे लिखने के लिए, 10 दिन बाद काम छोड़ दिया.
इसके बाद वे सज्जन मुंबई आ गए थे, जिनकी वजह से मेरी तकदीर में मुंबई की आबोहवा लिखी थी. आख़िरकार मुंबई में एक महीना गुजारने के बाद मुझे नवभारत टाइम्स में काम मिल गया. सॅलरी कम थी, इसलिए एक साल तक सांताक्रूज़ की एक चाल में रहा. नवभारत टाइम्स में सबने मेरी भरपूर मदद की. अब एक साल के बाद में किराए के फ्लॅट में रह रहा हूँ. सपना तो फिल्म लेखक और निर्देशक बनने का लेकर आया हूँ कब पूरा, पता नहीं, लेकिन विश्वास है की जल्दी ही मुझे मेरी मंज़िल मिलेगी, क्योंकि अब उसके काफ़ी करीब हूँ.

6 comments:

उन्मुक्त said...

भगवान करे कि आपका सपना जल्द पूरा हो।
देवनागरी में ही लिखिये।

रवि रावत "ऋषि" said...

बहुत बहुत धन्यवाद उन्मुक्त जी. आप दोस्तो की दुआ रही तो ज़रूर अपनी मंज़िल तक पहुंचूँगा.

Avani Jain said...

really nice. ek baat kahein, jis sacchayee se aapne zindagi ka itna bada sangharsh chand saral shabdo mein kah diya,ye kabil-e-tareef hai.aapki baat padhkar lagta hai ki wakai mumbai sapno ka sheher hai aur jo dil se sapne dekhte hai, unke sapne sach hote hain. wish u all the best for your future, bhagwaan kare aapka har sapna sach ho, bas apni simplicity, sacchayee mat chodiyega, hame yakin hai ki ek din safalta aapke kadam zaroor chumegi. wish u luck.

रवि रावत said...

Aani ji, aap hain kahan? Udaypur se vapas aa gai kya? houslaafjai ke liye shukriya. Munbai ka sangharsh to kuch bhi nahin hai, bhopal main to mujhe 5 din bhukhe rehna pada tha. can u beleave this? lekin ye sach hai. ye baat main bhi manta hoon ki agar sachche dil se mehnat ki jae to safalta zaroor milti hai. vaise is safalta ke peeche aap jaise dosto ki duaon ka bhi asar hai...

Avani Jain said...

haan ji. kal hi mumbai aaye. aur hamne koi houslaafjayee nahi ki bas ek kalamkar ko dil se dua di hai ki wo safal ho. okk. houslaafjaye to unki karte hai jinke housle buland na ho and i think aapko iski jaroorat nahin kyunki aapke housle buland hai. and shayad sangharsh hi zindagi ka dusra naam hai. u know hamesha zindagi mai wahi jeet yaad rahti hai jise aapne sangharsh kar haasil ki ho.mehnat ka fal meetha hota hai. so all the best.

सुनील शिवहरे said...

इरादा नेक हो, मन मे विश्‍वास हो, और अपनो का साथ हो, तो हर मुश्किल आसां हो जाती है|
रामायण मे श्री तुलसी दास जी ने कहा है-
जही के जही पर सत्य सनहू||
सो तही मिले ना कछु संदहू||