Tuesday 20 May 2008

ये मकान कई बरस पुराना है.

मेरे कूचे में जो दीवाना है,
उसका दिल गम का आशियाना है.

मैने दरवाजे की चीख से जाना,
ये मकान कई बरस पुराना है.

जुमलों पे ज़िंदगी नहीं चलती,
ये तो खुश रहने का बहाना है.

गमों की आँधियाँ थामेंगी नहीं,
हमें तो फिर भी मुस्कुराना है.

आजमाते हैं हम दूसरों को मगर,
मुश्किल खुद को आजमाना है.

- रवि रावत ""ऋषि

3 comments:

मनोज द्विवेदी said...

ajmate hai dusron ko magar
muskil khud ko ajmana hai
dil ko chhu gayi apki rachana.....

रवि रावत said...

bahut bahut shukriya manoj ji... Ravi

सुनील शिवहरे said...

बहुत खूब दिल खुश कर दिया... हमेशा ऐसे ही लिखते रहो...